भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक आँगन में दो आँगन हो जाते हैं / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
एक आँगन में दो आँगन हो जाते हैं
मत पूछा कर किस कारन हो जाते हैं
हुस्न की दौलत मत बाँटा कर लोगों में
ऐसे वैसे लोग महाजन हो जाते हैं
ख़ुशहाली में सब होते हैं ऊँची ज़ात
भूखे-नंगे लोग हरिजन हो जाते हैं
राम की बस्ती में जब दंगा होता है
हिन्दू-मुस्लिम सब रावन हो जाते हैं