भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम से गुम-राह ज़माने ने कहाँ देखे हैं / 'महशर' इनायती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम से गुम-राह ज़माने ने कहाँ देखे हैं
हम ने मिटते हुए क़दमों के निशाँ देखे हैं

आप ने देख के हर इक को नज़र फेरी है
आप ने साहिब-ए-एहसास कहाँ देखे हैं

ज़िंदगी सीधी सी इक राह नहीं ऐ दोस्त
इस में जो मोड़ हैं वो तू ने कहाँ देखे हैं

दिल जहाँ लरज़े उम्मीदों का तसव्वुर कर के
मैं ने उम्मीद के आसार वहाँ देखे हैं

उठ गई आँख अगर मेरी तो जम जाएगी
आप ने दीदा-ए-हर-सू-निगाराँ देखे हैं