भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम हैं साथी यात्री / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’
Kavita Kosh से
हम हैं साथी! यात्री, कि भ्रमणकारी!
तय किया नहीं, चलने की तैयारी!
सड़कों की भीड़ों में खो जाना है,
कुछ चाहा तो अनचाहा पाना है,
तय नहीं, कि चलना ख़ुशी, कि लाचारी है!
मेले में होगा मन भारी-भारी!
हम हैं साथी! यात्री, कि भ्रमणकारी!
तय किया नहीं, चलने की तैयारी!
चलते-चलते थक जाना ही होगा,
एक-सा लगेगा भोग-अनभोगा,
तय नहीं, कि हम साधू या संसारी!
जीती बाज़ी होगी हारी-हारी!
हम हैं साथी! यात्री, कि भ्रमणकारी!
तय किया नहीं, चलने की तैयारी!
पथ को सब-कुछ कहने से क्या होगा,
भावुकता में बहने से क्या होगा,
तय नहीं, कि हम दृष्टा, कि क्रान्तिकारी!
घूमती फिरेगी गति मारी-मारी!
हम हैं साथी! यात्री, कि भ्रमणकारी!
तय किया नहीं, चलने की तैयारी!