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हर ओर हाहाकार है आकर मिटाते क्यों नहीं / रंजना वर्मा
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हर ओर हाहाकार है आ कर मिटाते क्यों नहीं।
गोपाल फिर सुख शांति की धुन तुम सुनाते क्यों नहीं॥
अब सत्य को सुनता न कोई झूठ का व्यापार है
घनश्याम सबको सत्य की महिमा बताते क्यों नहीं॥
है न्याय की देवी नयन पर बाँध कर पट्टी खड़ी
झूठी बहस है न्याय बिकता तुम बचाते क्यों नहीं॥
उद्दंड कौरव-वंश लुटती हर पहर है द्रौपदी
सुन कर करुण स्वर चीर द्रुपदा की बढ़ाते क्यों नहीं॥
अन्याय जो करते वही सीना फुला कर घूमते
नीलाम होती वेदना तुम पथ दिखाते क्यों नहीं॥
अर्जुन समर में दिग्भ्रमित सिर को झुकाये है खड़ा
अब पांडवों को कर्म के व्याख्यान भाते क्यों नहीं॥
है शीश पर अरि नाचता पाखण्ड कितने कर रहा
अब तुम अखण्डित राष्ट्र के ध्वज को उड़ाते क्यों नहीं॥