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हर सूरत पहचानी-सी / 'महताब' हैदर नक़वी

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हर सूरत पहचानी-सी
लगती है बेगानी-सी
 
हम थे और दयार-ए-इश्क़
जीने की असानी-सी
 
हचल रहती थी दिल में
दरिया की तुग़ियानी-सी
 
इक तस्वीर उजालों की
नीली, पीली, धानी-सी
 
वो सूरत भी भूल गये
‘गुड़िया एक जापानी-सी’
 
लेकिन अब भी ज़िन्दा हैं
होती है हैरानी-सी
 
बरसों बाद मिली कोई
इक सूरत अन्जानी-सी