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हे प्रभों, हाँ, तुम्हीं से! / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
हे प्रभो, हाँ तुम्ही से/तो
है शिकायत-
पखारे थे पाँव/तुमने
गरीब सुदामा के
द्वापर में
लगाया था गले उन्हे/गलबहियाँ भरकर
किन्तु
करा भी दी थी
यह बात दर्ज
इतिहास के गलियारों में
आज के नेताओं की मानिन्द
ताकि सनद रहे
युगों-युगों तक
जनता-जनार्दन को
आपकी अद्धितीय जन-सेवा की,
अनन्य मित्र-वत्सलता की!
मगर, प्रभो! कलियुग में/
क्या एक भी
तुम्हारा मित्र नहीं है?
प्रभो!
कलियुग में
आखिर कोई भी
तुम्हारा मित्र
क्यों नहीं है ?