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हे राधे! उस दिन जिस क्षणसे तुझसे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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हे राधे ! उस दिन जिस क्षणसे तुझसे मेरा हुआ विछोह।
नहीं छूटती स्मृति पलभर भी, बढ़ा अमित शुचितम है मोह॥
जाग्रत्-स्वप्न, क्रिया-निष्क्रियता-सबमें स्मृति अखण्ड रहती।
तेरी रस-धारा नस-नसमें अतिशय सुखद मधुर बहती॥
रहता मन है सदा तुझीमें, रहती तू नित मेरे पास।
नित्य निरन्तर अनुभव होता, बढ़ता रहता रस-उल्लास॥
व्यथा विछोह-मोहकी मार्मिक करती मुझे सहाय विशेष।
मानस-संनिधि-सुखका निरुपम अनुभव होता सदा अशेष॥