है किसका अधिकार नदी पर / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'
चलो नदी तट वार चलो रे
चलो नदी तट पार चलो रे,करें यात्रा नदियों की
नदी वार तट पार चलो रे,करें यात्रा नदियों की
इन नदियों के अगल-बगल ही
जीवन का विस्तार,चलो रे करें यात्रा नदियों की
आज इन्हीं नदियों के ऊपर
पड़ी है मारामार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
टुकड़ा-टुकड़ा नदी बिक रही
बूँद-बूँद जल भर, चलो रे करें यात्रा नदियों की
गाँव हमारे, नदी किनारे
सूखा कंठ हमारा, चलो रे करें यात्रा नदियों की
जल में बोतल,बोतल में जल
प्यासा पर संसार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
सूखा गीला बादर-बिजुली
सबकी हम पर मार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
प्रश्न यही कि नदी पर पहला
किसका है अधिकार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
नहीं किसी की नदी मौरूसी
हम पहले हकदार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
बहता पानी,चलता जीवन
थमा कि हाहाकार, चलो रे करें यात्रा नदियों की