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है की? कब्र सजैलोॅ जाय / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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है की? कब्र सजैलोॅ जाय
पुस्तैनी घर ढहलोॅ जाय।
घिसलोॅ पिटलोॅ केॅ छोड़ी केॅ
नया कथा कुछ कहलोॅ जाय।
साँप-जोंक सब तट सेॅ लागलै
गाय-मनुख सब भँसलोॅ जाय।
आँखी सेॅ अन्याय देखियो
मौज केना केॅ रहलोॅ जाय।
अखबारें तेॅ यही कहै छै
कोर्टो तलक विकैलोॅ जाय।
अन्यायोॅ पर सारस्वतो चुप
है नै ढेंस लगैलोॅ जाय।