भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है भाग्य की करनी कठिन जानी नहीं जाये कभी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है भाग्य की करनी कठिन जानी नहीं जाये कभी
आ कर लिपटती अंक में हो दूर ठुकराये कभी

उगता सदा प्राची दिशा पश्चिम दिशा में अस्त हो
रवि का कठिन है रास्ता आलस न दिखलाये कभी

हो ग्रीष्म दोपहरी गगन अंगार की वर्षा करे
जब मास श्रावण श्याम जलधर नीर बरसाये कभी

सन्ध्या सुहानी सांवरी रवि का करे स्वागत सदा
सँग साथ ले जाये कभी कर छोड़ मुस्काये कभी

जब मेघवर्णी साँवरा इन धड़कनों में आ बसा
आ सामने हँस दे कभी सपनों में छिप जाये कभी

घनश्याम का अवतार ले वृन्दा विपिन लीला करे
दशरथ सुअन बन हित सिया के अश्रु बरसाये कभी

कर दानवों का नाश दुर्गा सिंह चढ़ डोला करे
बन अन्नदा गिरि की सुता सन्तान दुलराये कभी