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होने को मेरी जान यहाँ क्या नहीं हुआ / 'महताब' हैदर नक़वी

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होने को मेरी जान यहाँ क्या नहीं हुआ
पूरा मगर ये ख़्वाब-ए-तमन्ना नहीं हुआ
 
बस एक ग़म है जिसको लिये फिर रहे हैं हम
बस एक ग़म है जिसका मुदावा1 नहीं हुआ
 
जैसे कि अपने आप से बेगाने हो गये
जैसे कि अपने आप से मिलना नहीं हुआ
 
आती है याद अब भी किसी की किसी के साथ
ख़ुश हूँ कि कोई ज़ख़्म पुराना नहीं हुआ
 
वो जसको जो भी होना था होते रहे मगर
पर यूँ हुआ कि अपना ही होना नहीं हुआ

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