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जा रहे स्कूल बच्चे | जा रहे स्कूल बच्चे | ||
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शब्द खनकाते | शब्द खनकाते | ||
+ | इस तरह | ||
+ | सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी । | ||
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रंग में डूबीं | रंग में डूबीं | ||
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संग में डूबीं | संग में डूबीं | ||
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− | कल | + | उतरने जा रही है खेत में कटनी । |
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13:00, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
देख करके बौर वाली
आम की टहनी
तन गये घुटने कि जैसे
खुल गई कुहनी ।
धूप बतियाती हवा से
रंग बतियाते
फूल-पत्तों के ठहाके
दूर तक जाते
छू गई चुटकी
हँसी की हो गई बोहनी ।
पीठ पर बस्ता लिए
विद्या कसम खाते
जा रहे स्कूल बच्चे
शब्द खनकाते
इस तरह
सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी ।
राग में डूबीं दिशाएँ
रंग में डूबीं
हाथ आई ज़िन्दगी के
संग में डूबीं
कल
उतरने जा रही है खेत में कटनी ।