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चरणसिंह की जनता पार्टी
गरज रही है
वैसे जैसे
महाकाश में गरज रहे हैं
बिन पानी के मेघ
सत्य शील से विमुख विशेष
झूठी आशा के फैलाए केश।
रचनाकाल: २८-०२-१९७७