[[सच की ज़ुबान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
सच की नहीं होती ज़ुबान<br>
वह काट ली जाती है<br>
बहुत पहले-<br>
अहसास होते ही<br>
कि व्यक्ति<br>
किसी न कुसी दिन<br>
सच बोलेगा<br>
किसी बड़े आदमी का राज़ खोलेगा ।<br>
शुभ कर्म का<br>
नहीं होता कोई पथ<br>
जो इस पथ को पहचानते हैं<br>
वे इस पर चलने वाले<br>
हर कदम को रोक देना<br>
शुभ मानते हैं ; <br>
क्योंकि<br>
जो शुभ पथ पर चलेगा<br>
वह अशुभ की पगडण्डियाँ<br>
बन्द करेगा<br>
केवल भगवान से डरेगा।<br>
बच नहीं सकते वे हाथ<br>
जो इमारत बनाते हैं<br>
किसी के भविष्य की , <br>
जो गढ़ते हैं ऐसा आकार-<br>
जिसकी छवि<br>
आँखों को बाँध ले<br>
जो बोते हैं धरती पर <br>
ऐसे बीज , <br>
जिनसे पीढ़ियाँ फूलें –फलें ।<br>
जो देते हैं दुलार, <br>
जो बाँटते हैं प्यार, <br>
जो उठते हैं केवल <br>
आशीर्वाद के लिए<br>
जो बढ़ते हैं किसी की रक्षा में<br>
वे काट लिए जाते हैं ; <br>
क्योंकि ऐसा न करने पर<br>
कुकर्म के अनगिन भवन<br>
ढह जाएँगे , <br>
टूट जाएँगी कई तिलिस्मी मूर्तियाँ ।<br>
तृप्त पीढ़ी रिरियाएगी नहीं<br>
दुलार ,प्यार और आशीर्वाद <br>
की छाया में पले लोग<br>
उनकी खरीद भीड़ नहीं बन सकेंगे ।<br>
…………………………………………………..
उजाले की खातिर मैं द्वार आया। <br>
शुक्रिया तुमने घर मेरा जलाया ..<br>
……………………………………………………………………………
[[कुछ दु:ख झेलो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
कुछ दु:ख झेलो<br>
कुछ दु:ख ठेलो<br>
कुछ राम भरोसे छोड़ दो।<br>
दुख क्या बन्धु<br>
बहती नदिया<br>
नहीं एक तट रह पाती है।<br>
जिधर चाहती<br>
मुड जाती है<br>
सुख-दुख बहा ले जाती है।<br>
या धारा के संग तुम<br>
या धारा का मुख मोड़ दो।<br>
[[पुरानी कमीज़ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
मेरा बेटा<br>
जब कुछ बड़ा हुआ<br>
पहन लेता मेरे जूते<br>
कभी मेरी क़मीज़<br>
चेहरे पर आ जाती चमक<br>
नन्हें पैर - बड़े जूते<br>
छोटा कद , झूलती कमीज़<br>
और खुशी- छूती आसमान ।<br>
जब बराबर कद हो गया, <br>
मेरे जूते और कमीज़<br>
उसके हो गए ।<br>
आज मैंने पहन ली<br>
उसकी पहनी हुई कमीज<br>
थोड़ा चटख रंग वाली<br>
बेटे ने टोका -<br>
‘ये पुरानी कमीज़ है<br>
आपको जचती नहीं’<br>
और अगले दिन ले आया<br>
कीमती नई कमीज़-<br>
‘इसे पहनें<br>
खूब फबेगी आप पर’<br>
वह नहीं चाहता कि<br>
उसका बाप उतरन पहने ।<br>
वह चला गया अब दूर ऽ ऽ ऽ <br>
दूसरे शहर<br>
घर एकदम खाली –सा<br>
लगता है ।<br>
मैंने फिर पहन ली चुपके से<br>
उसकी वही पुरानी कमीज़<br>
जिसके रेशे -रेशे में<br>
बेटे की छुअन रमी है, <br>
उसका स्पन्दन<br>
धड़कता है मेरी शिराओं में<br>
उसके पसीने की गन्ध<br>
महसूस करता हूँ हर साँस में<br>
इस कमीज़ के आगे निर्जीव है<br>
नई कीमती कमीज़ ।<br>
[[मेरे मन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
मत उदास हो मेरे मन।<br>
जिनको तुम काँटे समझे हो<br>
वे तो प्यारे चन्दन वन ।<br>
जितना पथ तुम चल पाए हो<br>
वह भी क्या कम बतलाओ । <br>
जितना अब तक बन पाए हो<br>
उस पर तो कुछ हरषाओ<br>
,
[[तुम मत घबराना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
दुख के बादल आएँगे , <br>
छाएँगे , बरसेंगे ।<br>
यह जीवन की रीत है बन्धु <br>
तुम मत घबराना ।<br>
सन्त, महात्मा, राजा, रानी <br>
सबका दौर रहा।<br>
दो पल बीते फिर धरती पर<br>
कहीं न ठौर रहा ।<br>
बिना पंख जो उड़े गगन में<br>
मुँह की खाएँगे ।<br>
आसमान क्या धरती पर भी <br>
ठौर न पाएँगे ।<br>
धूप-छाँव के जीवन में<br>
सदा सुखी है कोई ? <br>
कौन मरण से बच पाया है<br>
हमको बतलाना ।<br>
जो गर्दन पर छुरी चलाकर <br>
माया जोड़ रहे <br><br>
अपनी किस्मत के घट को वे <br>
खुद ही फोड़ रहे ।<br>
बिस्तर पर वे नोट बिछाकर <br>
क्या पाएँगे चैन<br>
कौन लूट ले या छीन ले<br>
इसमें कटती रैन ।<br>
केवल दो रोटी की भूख <br>
फिर भी हैं हलकान<br>
भूखों तक का कौर छीने<br>
दिखलाते हैMM शान<br>
[[सदा कामना मेरी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
सदा कामना मेरी-<br>
कुछ अच्छा करने की<br>
सबका दुख हरने की ।<br>
हर फूल खिलाने की<br>
हर शूल हटाने की ।<br>
सदा कामना मेरी -<br>
हरियाली ले आऊँ<br>
खुशहाली दे पाऊँ ।<br>
नेह नीर बरसाऊँ<br>
धरती को सरसाऊँ ।<br>
सदा कामना मेरी-<br>
मैं सबकी पीर हरूँ<br>
आँधी में धीर धरूँ ।<br>
पापों से सदा डरूँ<br>
जीवन में नया करूँ ।<br>
सदा कामना मेरी-<br>
नन्हीं पौध लगाऊँ<br>
सींच-सींच हरसाऊँ ।<br>
अनजाने आँगन को<br>
उपवन –सा महकाऊँ ।<br>
सदा कामना मेरी-<br>
हर मुखड़ा दमक उठे <br>
आँखें सब चमक उठें ।<br>
अधर सभी मुसकएँ<br>
मीठे गीत सुनाएँ ।<br><br>
[[उजाले / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
उम्र भर रहते नहीं हैं <br>
संग में सबके उजाले ।<br>
हैसियत पहचानते हैं <br>
ज़िन्दगी के दौर काले ।<br>
तुम थके हो मान लेते-<br>
हैं सफ़र यह ज़िन्दगी का ।<br>
रोकता रस्ता न कोई<br>
प्यार का या बन्दगी का ।<br>
हैं यहीं मुस्कान मन की<br>
हैं यहीं पर दर्द-छाले। <br>
तुम हँसोगे ये अँधेरा , <br>
दूर होता जाएगा ।<br>
तुम हँसोगे रास्ता भी<br>
गाएगा मुस्कराएगा ।<br>
बैठना मत मोड़ पर तू<br>
दीप देहरी पर जलाले ।<br>
[[मैं खुश हूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}}<br>
मैं बहुत खुश हूँ<br>
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
मेरे पास धन नहीं ; <br>
जिसको रखने के लिए<br>
तिज़ौरी खरीदूँ , <br>
रातों की नींद लुटाकर<br>
पहरा दूँ , <br>
जिसके लुट जाने पर<br>
शोक मनाऊँ<br>
आँसू बहाऊँ ।<br>
मैं बहुत खुश हूँ<br>
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
मेरे पास वह<br>
अहंकार नहीं है , <br>
जिसे ढोने के लिए<br>
गाड़ी खरीदनी पड़े ।<br>
जिस पर खड़े होकर<br>
यह प्यार भरी दुनिया<br>
बौनी दिखाई दे<br>
और मैं खुद को महान्<br>
समझने की हिमाकत कर सकूँ ।<br>
मैं बहुत खुश हूँ <br>
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
मेरे ज़ेहन में सिर्फ़<br>
तेरा अहसास है , <br>
जो मुझसे कहता है-<br>
रहो इस दुनिया में<br>
इस तरह , <br>
जैसे कोई रहता हो दुनिया में <br>
अजनबी की तरह ।<br>
[[कर्मठ गधा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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घोड़ों का क़द ऊँचा है<br>
माना पद भी ऊँचा है ।<br>
गधा नहीं फिर भी कम है<br>
ढोता बोझ नहीं ग़म है ।<br>
घोड़ा रेस जिताता है<br>
कुछ जेबें भर जाता है ।<br>
जो-जो काम गधा करता<br>
घोड़ा कब कर पाता है ।<br>
धीरज का है रूप गधा<br>
नहीं क्रोध में जलता है ।<br>
खा-सूखा खाकर भी<br>
बड़ी मस्ती में चलता है ।<br>
मान-अपमान से परे गधा<br>
कभी नहीं शोक मनाता है ।<br>
अपने ऊँचे मधुर स्वर में<br>
गुण प्रभु के गाता है ।<br>
सुख-दुख से निरपेक्ष गधा<br>
सचमुच सच्चा संन्यासी है ।<br>
जिस हालत में भगवान रखे<br>
वही हालत सुख-राशि है ।<br>
गधा कर्म का पूजक है<br>
सुबह जल्दी उठ जाता है ।<br>
बीवी सोती रहती है<br>
गधा ही चाय बनाता है ।<br>
एसी चैम्बर में घोड़ा<br>
घण्टी खूब बजाता है ।<br>
गधा देर में जब सुनता<br>
तब घोड़ा चिल्लाता है ।<br>
दफ़्तर में जाकर देखो<br>
गधे डटकरके काम करें ।<br>
घोड़ा फ़ाइलों में छुपकर<br>
जब चाहे आराम करे ।<br>
घोड़ा खाता है तर माल<br>
गधा बस पान चबाता है ।<br>
चाहे जितना भी थूके<br>
न पीकदान भर पाता है ।<br>
जिस दिन गधा नहीं होगा<br>
दफ़्तर बन्द हो जाएँगे ।<br>
आरामतलब जो भी घोड़े<br>
सारा बोझ उठाएँगे ।<br>
इसीलिए मैं कहता हूँ-<br>
गर्दभ का सम्मान करो ।<br>
राह-घाट में मिल जाए<br>
कभी न तुम अपमान करो ।<br>
[[हरियाली के गीत / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
{{KKGlobal}}<br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
[[कविताएँ]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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मत काटो तुम ये पेड़<br>
हैं ये लज्जावसन<br>
इस माँ वसुन्धरा के ।<br>
इस संहार के बाद<br>
अशोक की तरह<br>
सचमुच तुम बहुत पछाताओगे ; <br>
बोलो फिर किसकी गोद में<br>
सिर छिपाओगे ? <br>
शीतल छाया<br>
फिर कहाँ से पाओगे ? <br>
कहाँ से पाओगे फिर फल? <br>
कहाँ से मिलेगा ? <br>
सस्य श्यामला को <br>
सींचने वाला जल ? <br>
रेगिस्तानों में<br>
तब्दील हो जाएँगे खेत<br>
बरसेंगे कहाँ से <br>
उमड़-घुमड़कर बादल ? <br>
थके हुए मुसाफ़िर<br>
पाएँगे कहाँ से<br>
श्रमहारी छाया ? <br>
पेड़ों की हत्या करने से <br>
हरियाली के दुश्मनों को<br>
कब सुख मिल पाया ? <br>
यदि चाहते हो –<br>
आसमान से कम बरसे आग<br>
अधिक बरसें बादल , <br>
खेत न बनें मरुस्थल, <br>
ढकना होगा वसुधा का तन<br>
तभी कम होगी<br>
गाँव –नगर की तपन ।<br>
उगाने होंगे अनगिन पेड़<br>
बचाने होंगे<br>
दिन- रात कटते हरे- भरे वन ।<br>
तभी हर डाल फूलों से महकेगी<br>
फलों से लदकर<br>
नववधू की गर्दन की तरह<br>
झुक जाएगी<br>
नदियाँ खेतों को सींचेंगी<br>
सोना बरसाएँगी<br>
दाना चुगने की होड़ में<br>
चिरैया चहकेगी<br>
अम्बर में उड़कर<br>
हरियाली के गीत गाएगी<br>