[[कवि जी पकड़े गए कुण्डलियाँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’गिरिधर कवि ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’गिरिधर कवि]] <br>
[[कविताएँकविता]] <br>
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’गिरिधर कवि]] <br>
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जानो नहीं जिस गाँव में ,कहा बूझनो नाम ।<br>
तिन सखान की क्या कथा,जिनसो नहिं कुछ काम ॥<br>
जिनसो नहिं कुछ काम,करे जो उनकी चरचा ।<br>
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥<br>
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।<br>
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥1॥<br>
हत्या के अभियोग में<br> कवि जी पकड़े गए<br> अति सुकोमल हाथ उनके<br> हथकड़ियों में जकड़े गए ।<br> आरोप था उन पर यह-<br> कवि जी पथिक को रोककर<br> कविता सुना रहे थे<br>बेहोश जब वह हो जाता<br> पानी छिड़ककर<br> उसे बार –बार<br> होश में ला रहे थे ।<br> [[श्वान-पीड़ित / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ जोंक जी<br> कई दिन से भरे हुए हैं<br> अपनी ही गली के कुत्तों से<br> बेहद डरे हुए हैं<br> लोगों ने समझाया-<br> कुत्ते जब भी चौंकते हैं , <br> तभी भौंकते हैं ; <br> क्योंकि वे हर चोर को<br> उसके शरीर से निकली<br> गन्ध से पहचानते हैं , <br> भले ही वे कुत्ते हों<br> आदमी को आदमी से<br> ज़्यादा ही जानते हैं ।<br> तुम्हारे मन में चोर है<br> तुम ईमान को खूँटी पर टाँगकर<br> दफ़्तर जाते हो<br> तभी तो गली के कुत्तों से<br> इतना घबराते हो ।<br> इस स्थिति के लिए<br> तुम खुद ही जिम्मेदार हो <br>। भौंकता वही है , <br> जो कुछ जानता है<br> जो भीड़ में घुसे चोरों को<br> उनकी गन्ध से पहचानता है ।<br> भौंकने वालों पर<br> लोग कब रीझते हैं ? <br> चोर –<br> हमेशा कुत्तों पर खीझते हैं ।<br> [[गाँव की चिट्ठी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[दोहे ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ भीगे राधा के नयन , तिरते कई सवाल ।<br> कभी न ऊधौ पूछता ,ब्रज में आकर हाल।।1 <br> चिट्ठी अब आती नहीं ,रोज सोचता बाप।<br> जब- जब दिखता डाकिया ,और बढ़े संताप ।।2<br> रह रहकर के काँपते , माँ के बूढे़ हाथ ।<br> बूढ़ा पीपल ही बचा ,अब देने को साथ ।।3 बहिन द्वार पर है खड़ी ,रोज देखती बाट ।<br> लौटी नौकाएँ सभी ,छोड़- छोड़कर घाट ।।4<br> आँगन गुमसुम है पडा़ , द्वार गली सब मौन ।<br> सन्नाटा कहने लगा ,अब लौटेगा कौन ।।5<br> नगर लुटेरे हो गये ,सगे लिये सब छीन ।<br> रिश्ते सब दम तोड़ते, जैसे जल बिन मीन ।।6<br> रोज काटती जा रही ,सुधियों की तलवार।<br> छीन लिया परदेस ने, प्यार- भरा परिवार।।7<br> वह नदिया में तैरना , घनी नीम की छाँव।<br> रोज रुलाता है मुझे ,सपने तक में गाँव।।8<br> हरियाली पहने हुए, खेत देखते राह ।<br> मुझे शहर मे ले गया, पेट पकड़कर बाँह।।9<br> डबडब आँसू हैं भरे ,नैन बनी चौपाल ।<br> किस्से बाबा के सभी , बन बैठे बैताल ।।10<br> बँधा मुकददर गाँव का ,पटवारी के हाथ।<br> दारू -मुर्गे के बिना तनिक न सुनता बात।।11<br> [[वासन्ती दोहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[दोहे]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ वसन्त द्वारे है खडा़ ,मधुर मधुर मुस्कान ।<br> साँसों में सौरभ घुला ,जग भर से अनजान ।।1<br> चिहुँक रही सुनसान में ,सुधियों की हर डाल ।<br> भूल न पाया आज तक , अधर छुअन वह भाल ।।2<br> जगा चाँद है देर तक ,आज नदी के कूल ।<br> लगता फिर से गड़ गया उर में तीखा शूल ।।3<br> मौसम बना बहेलिया ,जीना- मरना खेल ।।<br> घायल पाखी हो गए ,ऐसी लगी गुलेल ।।4<br> अँजुरी खाली रह गई ,बिखर गये सब फूल ।<br> उनके बिन मधुमास में ,उपवन लगते शूल।।5<br> ……………………………………………… [[मैं घर लौटा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ बहुत मैं घूमा पर्वत पर्वत<br> नदी घाट पार खूब नहाया <br> और पिया तीरथ का पानी<br> आग नहीं मन की बुझ पाई।<br><br> बहुत नवाया मैंने माथा<br> मन्दिर और मज़ारों पर भी<br> खोज न पाया अपने मन का<br> चैन जरा भी । <br><br> रेगिस्तानों में चलकर के<br> दूर गया मैं सूनेपन तक<br> आग मिली बस आग मिली थी।<br><br> मैं लौटा सब फेंक फाँककर<br> भगवा चोला और कमंडल<br> और खोजने की बेचैनी<br> उन सबको जो नहीं पास थे<br> पहले मेरे।<br><br> मैं घर लौटा।<br><br> आकर बैठा था आँगन में <br> टूटी खटिया पेड़ नीम का<br> बिटिया आई दौड़ी दौड़ी <br> दुबकी गोदी में वह आकर<br> पत्नी आई सहज भाव से<br> और छुआ मुझको धीरे से।<br><br> बरस पड़ी जैसे शीतलता<br> और चाँदनी भीनी भीनी<br> मेरे छोटे से आँगन में । <br><br> मैं मूरख था , <br> अब तक भटका<br> बाहरबाहर ।<br><br> झाँक न पाया था भीतर मैं<br><br> पावन मन्दिर , तीर्थ जहाँ था<br> और जहाँ थे ऊँचे पर्वत<br> शीतल शीतल , <br> और भावना की नदियाँ थीं<br><br> कलकल करती<br> छल छल बहती।<br> झोंके खुशबू के<br> भरे हुए थे , बात बात में।<br> जुड़े हुए थे हम सब ऐसे<br> नाखून जुड़े हो <br> साथ मांस के<br>--[[सदस्य:Rdkamboj|Rdkamboj]] १२:४८, १२ जून २००७ (UTC)युगों युगों से । <br> [[ बचकर रहना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ चारों ओर रेंगते विषधर <br>बचकर रहना।<br> इनसे बढ़कर मानुष का डर<br>बचकर रहना।।<br> भले लोग ही बसे यहाँ हैं <br>इन भवनों में।<br> रोज फेंकते हैं ये पत्थर <br>बचकर रहना।।<br> जहर बुझी है इनकी वाणी<br>कपट कवच है।<br> छल प्रपंच है इनका बिस्तर<br>बचकर रहना।।<br> कदम कदम पर फूलों का <br>भ्रम फैलाते हैं ।<br> छुपे हुए फूलों में नश्तर<br>बचकर रहना॥<br> चन्दन- वन को राख किया है <br>इन लोगों ने।<br> अब आए ये वेश बदलकर<br>बचकर रहना॥<br> अंगारों पर चलकर हमने <br>उम्र बिताई ।<br> ढूँढ, न पाए हम अपना घर<br>बचकर रहना॥<br> [[ज़रूरी है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ जीवन के लिए जरूरी है<br><br> थोडी़ - सी छाँव<br> थोडी़- सी धूप।<br> थोडी़ - सा प्यार<br> थोडी़- सा रूप।<br> जीवन के लिए जरूरी है…<br><br> थोडा़ तकरार<br> थोड़ी मनुहार ।<br> थोड़े -से शूल<br> अँजुरीभर फूल ।<br> जीवन के लिए जरूरी है…<br><br> दो चार आँसू<br> थोड़ी मुस्कान ।<br> थोड़ी - सा दर्द<br> थोड़े- से गान ।<br> जीवन के लिए जरूरी है…<br><br> उजली- सी भोर<br> सतरंगी शाम ।<br> हाथों को काम<br> तन को आराम ।<br> जीवन के लिए जरूरी है…<br><br> आँगन के पार<br> खुला हो द्वार ।<br> अनाम पदचाप<br> तनिक इन्तजार ।<br> जीवन के लिए जरूरी है …<br><br> निन्दा की धूल<br> उड़ा रहे मीत ।<br> कभी कभी हार<br> कभी कभी जीत ।<br> >>>>>>>>>>>>>>>>>> [[बहता जल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ हम तो बहता जल नदिया का<br> अपनी यही कहानी बाबा।<br> ठोकर खाना उठना गिरना<br> अपनी कथा पुरानी बाबा।<br> कब भोर हुई कब साँझ हुई<br> आई कहाँ जवानी बाबा।<br> तीरथ हो या नदी घाट पर<br> हम तो केवल पानी बाबा।<br> जो भी पाया, वही लुटाया<br> ऐसे औघड, दानी बाबा।<br> अपने किस्से भूख प्यास के<br> कहीं न राजा रानी बाबा।<br> घाव पीठ पर , मन पर अनगिन<br> हमको मिली निशानी बाबा।<br> [[अधर पर मुस्कान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ अधर पर मुस्कान दिल में डर लिये<br> लोग ऐसे ही मिले पत्थर लिये।<br> आँधियाँ बरसात या कि बर्फ़ हो<br> सो गये फुटपाथ पर ही घर लिये।<br> धमकियों से क्यों डराते हो हमें<br> घूमते हम सर हथेली पर लिये।<br> मिल सका कुछ को नहीं दो बूँद जल<br> और कुछ प्यासे रहे सागर लिये ।<br> हार पहनाकर जिन्हें हम खुश हुए<br> वे खड़े हैं सामने पत्थर लिये ।<br> [[तिनका-तिनका / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ तिनका तिनका लाकर चिड़िया<br> रचती है आवास नया ।<br> इसी तरह से रच जाता है<br> सर्जन का आकाश नया ।<br> मानव और दानव में यूँ तो<br> भेद नजर नहीं आएगा ।<br> एक पोंछता बहते आँसू<br> जीभर एक रुलाएगा ।<br> रचने से ही आ पाता है<br> जीवन में विश्वास नया ।<br> कुछ तो इस धरती पर केवल<br> खून बहाने आते हैं ।<br> आग बिछाते हैं राहों पर<br> फिर खुद भी जल जाते हैं ।<br> जो होते खुद मिटने वाले<br> वे रचते इतिहास नया ।<br> मंत्र नाश का पढ़ा करें कुछ<br> द्वार -द्वार पर जा करके ।<br> फूल खिलाने वाले रहते<br> घर घर फूल खिला करके ।<br> रहता सदा इन्हीं के दम पर<br> सुरभि सरोवर पास नया ।<br> [[जंगल-जंगल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ जंगल जंगल आग लगी है<br> घिरे बीच में हम ।<br> झुलस गया है रोयाँ रोयाँ<br> हुई न आँखें नम ।<br> रोते भी तो हम क्यों रोते<br> दर्द समझता कौन ।<br> कुछ हँसते ,कुछ नज़र चुराते<br> कुछ रह जाते मौन । <br> आग लगाने वाली दुनिया<br> आग बुझाते कम ।<br> अच्छे का अंजाम बुरा है<br> जाने हम यह बात ।<br> करें बुरा हम बोलो कैसे<br> दिल कब देता साथ ।<br> आशीर्वाद करें क्या लेकर<br> शापित जनम जनम ।<br> रेगिस्तानों में निकल पड़े हम<br> प्यास बुझाने को ।<br> कपटी साथी आए दूर तक<br> राह बताने को ।<br> हमने हँस हँस झेले तीखे<br> चुभते तीर विषम ।<br> [[अंधकार ये कैसा छाया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ अंधकार ये कैसा छाया<br> सूरज भी रह गया सहमकर ।<br> सिंहासन पर रावण बैठा<br> फिर से राम चले वन पथ पर ।<br> लोग कपट के महलों में रह<br> सारी उमर बिता देते हैं ।<br> शिकन नहीं आती माथे पर<br> छाती और फुला लेते हैं ।<br> कौर लूटते हैं भूखों का<br> फिर भी चलते हैं इतराकर ।।<br> दरबारों में हाजि़र होकर<br> गीत नहीं हम गाने वाले ।<br> चरण चूमना नहीं है आदत<br> ना हम शीश झुकाने वाले ।<br> मेहनत की सूखी रोटी भी<br> हमने खाई थी गा गाकर ।।<br> दया नहीं है जिनके मन में<br> उनसे अपना जुड़े न नाता ।<br> चाहे सेठ मुनि ज्ञानी हो<br> फूटी आँख न हमें सुहाता ।<br> ठोकर खाकर गिरते पड़ते<br> पथ पर बढ़ते रहे सँभलकर।।<br> [[गोरखधन्धा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ मीठा - मीठा तुम बोले थे<br> मन में कपट कटारी थी ।<br> मूरख बनकर रहे देखते<br> आदत यही हमारी थी ।<br> पूँछ हिलाना ,दाँत दिखाना<br> मर्म सभी पहचाने हम ।<br> कब काटोगे तुम चुपके से<br> सारी बाते जानें हम ।<br> चतुर सुजान समझते खुद को<br> बहुत बड़ी लाचारी थी ।<br> मूरख बनकर समझ सके हम<br> दुनिया का गोरखधन्धा ।<br> अपनेपन की कपट ओढ़नी<br> है बहेलिये का फन्दा ।<br> फन्दे में फँसकर उठी हँसी<br> सौ खुशियों पर भारी थी ।<br> न लेकर आये न ले जाना<br> कैसा शोक मनाएँ हम ।<br> नहीं बटोरे काँकर पाथर<br> ताला कहाँ लगाएँ हम ।<br> तुम लुटकरके रातों जागे<br> हम पर छाई खुमारी थी ।<br> [[दौलत और नींद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ दौलत के नशे में नींद नहीं आती ।<br> फकी़र को लुटने का डर नहीं होता ॥<br> फुटपाथ पर हमको सोने दे हुज़ूर ।<br> मुफ़लिसों का कहीं भी घर नहीं होता ।।<br> उपवन मत जलाओ कुछ शूल के लिए ।<br> यों कोई शहर बेहतर नहीं होता ।।<br> काबुल में खिलें या काशी में मह़कें ।<br> फूल के हाथ में खंज़र नहीं होता ॥<br> नाग पालकर वे चाहते रहे अमन ।<br> ज़िन्दगी का इलाज ज़हर नहीं होता ॥<br> हो चुके हैं लोग अब इतने बेहया ।<br> चीख- पुकार का भी असर नहीं होता ॥<br> [[बंजारे हम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ जनम जनम के बंजारे हम<br> बस्ती बाँध न पाएगी ।<br> अपना डेरा वहीं लगेगा<br> शाम जहाँ हो जाएगी ।<br> जो भी हमको मिला राह में<br> बोल प्यार के बोल दिये ।<br> कुछ भी नहीं छुपाया दिल में<br> दरवाजे सब खोल दिये ।<br> निश्छल रहना बहते जाना<br> नदी जहाँ तक जाएगी ।<br> ख्वाब नहीं महलों के देखे<br> चट्टानों पर सोए हम ।<br> फिर क्यों कुछ कंकड़ पाने को<br> रो रो नयन भिगोएँ हम ।<br> मस्ती अपना हाथ पकड़ कर<br> मंजिल तक ले जाएगी ।<br> [[वश में है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ तुमने फूल खिलाए<br> ताकि खुशबू बिखरे<br> हथेलियों मे रंग रचें ।<br> तुमने पत्थर तराशे<br> ताकि प्रतिष्ठित कर सको<br> सबके दिल में एक देवता ।<br> तुमने पहाड़ तोड़कर<br> बनाई एक पगडण्डी<br> ताकि लोग मीठी झील तक<br> जा सकें<br> नीर का स्वाद चखें<br> प्यास बुझा सकें ।<br> तुमने सूरज से माँगा उजाला<br> और जड़ दिया एक चुम्बन<br> कि हर बचपन खिलखिला सके<br> यह तुम्हारे वश में है ।<br> लोग काँटे उगाएँगे<br> रास्ते मे बिछाएँगे<br> लहूलुहान कदमों को देखकर<br> मुस्कराएँगे ।<br> पत्थर उछालेंगे<br> अपनी कुत्सित भावनाओं के<br> उन्हें ही रात दिन<br> दिल में बिछाकर<br> कारागार बनाएँगे ।<br> पहाड़ को तोड़ेंगे<br> और एक पगडण्डी<br> पाताल से जोड़ेंगे<br> कि जो जाएँ<br> वापस न आएँ।<br> सूरज से माँगेगे आग<br> और किसी का घर जलाएँगे ।<br> यह उनके वश में है ।<br> यह उनकी प्रवृत्ति है<br> वह तुम्हारे वश में है ।<br> [[रिश्तों की आँच / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ बुझ जाती है<br> दिए की लौ<br> अलाव की आग<br> फिर भी<br> जिन्दा रहती है<br> कहीं न कहीं<br> रिश्तों की आँच<br> मद्धिम ही सही ।<br> सूख जाती है<br> बरसाती नदी<br> अलसाया-सा<br> चट्टानों से निकला<br> पतला सा– सोता जल का<br> कहीं न कहीं ,फिर भी<br> रह जाता है पानी<br> कुछ पानीदार लोगों की<br> चमकती आँखों में।<br> लू के थपेड़ों में<br> सूख जाते हैं<br> हरे भरे उपवन<br> सिर उठाती कलियाँ<br> बच जाती है<br> फिर भी<br> थोडी़ बहुत खुशबू<br> कुछ लोगों की साँसों में<br> दिल से अँखुआई<br> बातों में ।<br> इसी तरह<br> ज़िन्दा रहते हैं फिर भी<br> आँच और पानी<br> जीवन की खुशबू ।<br> >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> [[मुदित नया साल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ ओस भीगी धरा<br> किरनों के पाँव<br> उतरा है सूरज<br> अपने इस गाँव ।<br> पत्तों से छनकर<br> आई है धूप<br> निखरा है प्यारा<br> धरती का रूप ।<br> शरमाती कलियाँ<br> मुस्काते फूल<br> बाट में बिछाए<br> घास के दुकूल ।<br> तरुवर पर पाखी<br> देते हैं ताल<br> द्वार पर खड़ा है<br> मुदित नया साल ।<br> [[बयान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> [[कविताएँ]] <br> [[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br> ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ मैं बार– बार आऊँगा<br> लेकर फूलों का हार<br> तुम्हारे द्वार ।<br> जितने भी काँटे पथ में<br> बिखरे हुए पाऊँगा<br> आने से पहले मैं<br> जरूर हटाऊँगा ।<br> मैं बार –बार आऊँगा ।<br> बहुत हैं अँधेरे जग में<br> आँगन में देहरी पर<br> जहाँ तक हो सकेगा<br> दीपक जलाऊँगा ।<br> मैं बार– बार आऊँगा ।<br> मुस्कानों की खुशबू को<br> बिखेर हर चेहरे पर<br> सूरज सी चमक सदा<br> हर बार लाऊँगा<br> मैं बार– बार आऊँगा ।<br>