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जब पलकें झपका कर नभ में तारे हँसते, तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है ! *जब झूम-झूम उठते फूलों के दल के दल ,मधुमय वसन्तश्री राग लुटाती आती है गुन-गुन के गुंजन में वन की डाली-दाली ,सौरभ मधु से मधुपों की प्यास मिटाती है , अमराई की डालों से उठती कूक पिकी की आकुलता तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है ! जब किसी द्वार पर अपनी झोली फैला कर ,कोई अंधा भिक्षुक जिसका घर-बार नहीं , गा उठता कोई करुण मधुर संगीत कि दाता जो देदे वह होगा अस्वीकार नहीं ! अभिमानी मन का मान डोल उठता है जब , तब मेरे मन को याद तुम्हारी आती है !
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