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शहर : एक बिम्ब / सांवर दइया

17 bytes added, 09:20, 6 मार्च 2011
संकड़े कमरों में
आदमियों के पास
: बैठे: सोए: खड़े
आदमी
: आदमी: आदमी
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-
पुरानी और बेकार फाइलें-
: बोरों में !
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>
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