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शहर : एक बिम्ब / सांवर दइया
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09:20, 6 मार्च 2011
संकड़े कमरों में
आदमियों के पास
:
बैठे
:
सोए
:
खड़े
आदमी
:
आदमी
:
आदमी
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-
पुरानी और बेकार फाइलें-
:
बोरों में !
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>
Neeraj Daiya
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