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स्निग्ध-शान्ति / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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15:19, 7 मार्च 2011
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'''कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।'''
मलिन करो मत अपना शशि मुँह हे प्रियरजनी
तारों को न गिराओ यों गोदी से अपनी,
अनिल जनविजय
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