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स्निग्ध-शान्ति / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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मलिन करो मत अपना शशि मुँह हे प्रियरजनी
तारों को न गिराओ यों गोदी से अपनी,
दुखी दृगों को जो देते रहते आश्वासन
क्षीण करो मत उन सुन्दर सपनों के जीवन
उन्हें न छोड़ो निस्सहाय जिनकी काया में
लगे हुए व्रण छुपे तुम्हारी ही छाया में
होने दो आलप तापित पुष्पों के मुख पर
शीत शिशिर की वर्षा निःस्वन और मनोहर
जन हृदयों को तुम अभय वरदान-सी बनी
बनो शाप-सी तुम न उन्हीं को हे प्रिय रजनी ।