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"स्निग्ध-शान्ति / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर

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मलिन करो मत अपना शशि मुँह हे प्रियरजनी
 
मलिन करो मत अपना शशि मुँह हे प्रियरजनी
 
तारों को न गिराओ यों गोदी से अपनी,
 
तारों को न गिराओ यों गोदी से अपनी,

20:49, 7 मार्च 2011 के समय का अवतरण

कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।


मलिन करो मत अपना शशि मुँह हे प्रियरजनी
तारों को न गिराओ यों गोदी से अपनी,

दुखी दृगों को जो देते रहते आश्वासन
क्षीण करो मत उन सुन्दर सपनों के जीवन

उन्हें न छोड़ो निस्सहाय जिनकी काया में
लगे हुए व्रण छुपे तुम्हारी ही छाया में

होने दो आलप तापित पुष्पों के मुख पर
शीत शिशिर की वर्षा निःस्वन और मनोहर

जन हृदयों को तुम अभय वरदान-सी बनी
बनो शाप-सी तुम न उन्हीं को हे प्रिय रजनी ।