भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
|संग्रह=गीत माधवी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''हिमालयकविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें'''  
हिमगिरि के शिखरों पर
हिम की रेखा पतली
शेष रही अब और कगारों में
कुछ निचली
और गयी रेखायंें गई रेखाएँ हिम की
खाकी नीली
हिमबिहीन हिमविहीन हैं इन्द्र नील
मणियों का टीला
गए मेघ वर्षा के अम्बर से गिरि के
हिम जल से गंभीर
किनारे कर सरि -सरि केहंस सुर्य -सूर्य फिर पर्वत पंुज पुंज अनेक पार करहंसता हँसता जैसे पथिक सुख भरे गृह में आकर (हिमालय कविता से )
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,276
edits