{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
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<poem>
बम फटा था ।
: सर्र-सर्र से: चक्करी चलती: फर्र-फर्र: फुलझड़ी फर्राटा ।
सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।
: फटाक-फटाक: चली जो गोली: ऐसा भी : पिस्तौल बना था ।
ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।
: हुर्रे-हुर्रे, का: शोर मचाकर: बच्चों का टोला: झूम रहा था ।
जगमग हो गई
दुनिया सारी