भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गजब की दिवाली / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूम धड़ाका
बजे पटाखा
भड़ाम से बोला
बम फटा था ।

  सर्र-सर्र से
  चक्करी चलती
  फर्र-फर्र
  फुलझड़ी फर्राटा ।

सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।

  फटाक-फटाक
  चली जो गोली
  ऐसा भी
  पिस्तौल बना था ।

ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।

  हुर्रे-हुर्रे, का
  शोर मचाकर
  बच्चों का टोला
  झूम रहा था ।

जगमग हो गई
दुनिया सारी
ख़ुशियों का पहिया
घूम रहा था ।