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"अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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अब कहाँ है?
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नसों में रुधिर की तरह!
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बिखराव है!
बिखराव है !
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01:40, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

समर —
अब कहाँ है?
सफ़र —
अब कहाँ है?

थम गया सब
बहता उछलता नदी-जल तरल,
जम गया सब —
नसों में रुधिर की तरह!

दर्द से
देह की हड्डियाँ सब
चटखती लगातार,
अब कौन
इन्हें दबाए
टूटती आख़िरी साँस तक?
अँधेरे-अँधेरे घिरे
जब न कोई
पास तक!

लहर अब कहाँ
एक ठहराव है,
ज़िन्दगी अब —
शिथिल तार;
बिखराव है!