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सिंधु-वेला ।
तप्त रेती पर पडा पड़ा चुपचाप मोती सोचता है, आह !
मेरा सीप, मेरा दूधिया घर,
क्या हुआ, किसने उजाडा उजाड़ा मुझेज्वार आए, गए, जल-तल शांतशाँत-निश्चल,मैं यहां यहाँ निरुपाय ऐसे ही तपूँगा।तपूँगा ।
ओ लहर! फिर लौट आ मुझको बहा ले चल ।
बहुत संभव, फिर न मुझको मिले
मेरा सीप, मेरा दूधिया घर ।
ओ लहर! फिर लौट आ मुझको बहा ले चल ।
तप्त रेती पर पडा पड़ा चुपचाप मोती सोचता है ।
सिंधु-वेला ।
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