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तिनका / शिवदयाल

19 bytes added, 16:11, 19 मई 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदयाल
|संग्रह= }}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>
करने को
 
जब कुछ नहीं
 
तो कुतरते रहो
 
उसे मुँह में ले
 कि भर जाए कुछ खालीपन।खालीपन ।
जब पंछी घोंसले में
 
सहेज कर रखते हैं उसे
 
तब उसमें
 कितना होता है वजनवज़न
इतना रौंदे जाने के बाद भी
 
डूबने वाला
 
ढूँढ़ता है सहारा
 एकमात्र उसका! 
कैसा आश्चर्य है,
 
वह वहाँ है
 जहाँ और कोई तारणहार नहीं! 
यह ‘कुछ नहीं’ से
 
‘कुछ’ होने के दरम्यान
 
वह कहाँ रह जाता है
 सिर्फ सिर्फ़ तिनका!</poem>
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