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तिनका / शिवदयाल
Kavita Kosh से
करने को
जब कुछ नहीं
तो कुतरते रहो
उसे मुँह में ले
कि भर जाए कुछ खालीपन ।
जब पंछी घोंसले में
सहेज कर रखते हैं उसे
तब उसमें
कितना होता है वज़न !
इतना रौंदे जाने के बाद भी
डूबने वाला
ढूँढ़ता है सहारा
एकमात्र उसका !
कैसा आश्चर्य है,
वह वहाँ है
जहाँ और कोई तारणहार नहीं !
यह ‘कुछ नहीं’ से
‘कुछ’ होने के दरम्यान
वह कहाँ रह जाता है
सिर्फ़ तिनका !