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सदस्य वार्ता:Anil janvijay

1,871 bytes added, 11:55, 18 जनवरी 2008
--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ०९:१३, १९ सितम्बर २००७ (UTC)
 
'''संपादन के संबंध में'''
 
आदरणीय अनिल जी,
 
अभी कुछ दिनों पूर्व आपने मुक्तिबोध के कविता संग्रह "चाँद का मुँह टेढ़ा है" में संपादन करते हुए 'चाँद' पर से
 
चंद्रबिंदु हटा कर चांद कर दिया है। राजकमल द्वारा प्रकाशित संग्रह में इसे "चाँद का मुँह टेढ़ा है" ही लिखा गया है। मैं
 
प्रायः कविता संग्रह में प्रकाशित पाठ के अनुरूप ही कविताएँ टंकित कर काव्यकोश में डालता हूँ।
 
वैसे सही-ग़लत क्या है आप मुझसे ज़्यादा जानते होंगे, क्योंकि मेरा हिन्दी के व्याकरण का अध्ययन नहीं के बराबर
 
है। काव्यकोश के वर्तनी संबंधी दिशा निर्देशों में भी चाँद पर चंद्रबिंदु ही लगाने का उल्लेख है। मुझे भी लगता है कि
 
यदि चाँद से ही चंद्रबिंदु छीन लिया जाएगा तो वह बेचारा कहाँ जाएगा। उचित मार्ग दर्शन की अपेक्षा है।--[[सदस्य:Hemendrakumarrai|Hemendrakumarrai]] ११:५५, १८ जनवरी २००८ (UTC)
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