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सदस्य वार्ता:Anil janvijay

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किराएदार / अनवर ईरज ज़रा इसके हिज्जे देख लें।

मैं वापस काम पर लग गया हूँ। सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) ०४:०२, २९ जून २००८ (UTC)

अब क्या हुआ? इतनी सारी कविताएँ एक साथ डाल दी, और मुझे जवाब नहीं लिखा।

और पत्थर हो जाएगी नदी की सारी कविताओं में रचना साँचे में आपने |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा की जगह |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा भर दिया, जिससे हर कविता में संग्रह का लिंक लाल आ रहा है। और एक ग़लती ये भी कि इन सभी कविताओं में आपने शीर्षक के प्रारूप में गड़बड़ कर दी। किताब /मोहन राणा: ये ग़लत तरीक़ा है। हम / के आगे पीछे एक एक स्पेस देते हैं। प्रारूप क़ायम रखने से ये फ़ायदा है अगर आप सर्च-बाक्स में टाइप करके सीधा, बिना किसी लिंक के, किसी कविता पर जाना चाहते हैं। जैसे की सदस्यों के वार्ता वाले पन्ने का ये प्रारूप होता है: सदस्य वार्ता:Username तो मैं बग़ैर हाल में हुए बदलाव वाले पन्ने पर जाए, सीधा पहले पन्ने पर सर्च बॉक्स में सदस्य वार्ता:Anil janvijay टाइप करता हूँ।

शायद आप उस कम्प्यूटर पर बैठे हुए होंगे जिस पर हिंदी इनपुट नहीं है, ऐसे में इस साइट पर या इधर जा सकते हैं, इन पर इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड है। --सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) १३:१३, २८ अप्रैल २००८ (UTC)

क्या हुआ? शोध करने चले गए क्या? इतने दिन हो गए, कुछ बात ही नहीं की।--सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) १४:२६, २७ अप्रैल २००८ (UTC)

मैं आपसे सहमत नहीं हूँ

आपने ये बात वर्तनी मानक वाले पन्ने पर जोड़ी है:

इसी तरह नीचे दिए गए शब्द हालांकि दो तरह से लिखे जा सकते हैं लेकिन बेहतर हो कि कविता कोश के सहयोगी कविता कोश में पहले रूप का ही उपयोग करें जैसे 'गङ्गा' की जगह 'गंगा' लिखें और 'चञ्चल' की जगह 'चंचल'लिखें क्योंकि आजकल हिन्दी में प्राय: यही रूप प्रचलन में हैं ।

गंगा=गङ्गा चंचल=चञ्चल अंडा=अण्डा जंतु=जन्तु कंपन=कम्पन

मैंने इस नियम पर इतना ज़ोर दिया, कोश की पहली ऐडिट ही इस नियम को सुधारने के लिए की थी, पर फिर नतीजा ठन-ठन गोपाल। मैं इससे सहमत हूँ कि आधे ङ और आधे ञ की जगह अनुस्वार लगना चाहिए। क्योंकि आधा ङ जो कि क,ख,ग,घ में मिला के लिखा जाता था, संस्कृत के अलावा कहीं दिखता ही नहीं। और तो और यूनिकोड में इस मिले हुए रूप की बजाए ङ पर हल् लगा दिया जाता है, जो तो कभी देखा ही नहीं। ञ इसलिए नहीं कि इसे लोग उच्चारना ही नहीं जानते (कम से कम मैं और मेरे हिंदी टीचर तो नहीं), बिंदु के बहाने इसकी जगह न बोला जा सकता है। पर बाक़ी तीन अनुनासिकों के बारे में ये तो बिल्कुल ही ग़लत है। आप कह रहे हैं कि पहले वाले रूप को तरजीह दो, क्योंकि ये चलन में है, क्यों? कौन-से लाट साहब ने कहा है? मतलब ज़रा किसी की रैफ़्रैन्स देंगे।

ख़ैर, मैं कैसे साबित करूँ कि "चलन" ऐसा नहीं है। सीधा-सा तरीक़ा है किताबें टटोलो, आँकड़े जुटाओ, कि आधा न इस्तेमाल कितनी बार दिखाई दिया, बिंदु कितनी बार। ये तो शोधार्थी-छाप तरीक़ा हो गया। पर ऐसी ही बहस, हिंदी विकिपीडिया पर हुई थी, मुद्दा ये था कि मिस वर्ल्ड लिखा जाए या विश्व सुन्दरी? विश्व सुन्दरी वाला जीत गया। कैसे? उसने ये दलील दी : गूगल पर अगर मिस वर्ल्ड खोजा जाए तो 3900 परिणाम मिलते हैं, विश्व सुन्दरी के लिए 17600, और विश्व सुंदरी के लिए 2550, सो लिखे हुए में विश्व सुन्दरी ही चलन में है, मिस वर्ल्ड नहीं। पर यहाँ से मेरी तरकीब भी निकल गई। एक मिसाल तो इसी में ले लीजिए, कि सुन्दरी, सुंदरी से ज़्यादा लिखा जाता है। मैंने इस तरह की और खोजें की। कुछ अनुनासिक के हक़ में मिली, कुछ अनुस्वार के हक़ में, और, इस तरह, दोनों मिला के मेरे हक़ में। याने कि दोनों रूप "चलन" में है। देखिए: गूगल ठंडा के लिए 2140 नतीजे लाता है, और ठण्डा के लिए 12500। बंदर के लिए, इसके उलट, 10100 मिलते हैं, जबकि बन्दर के लिए 6230 । और गांधी के लिए भी 190,000, पर गान्धी के लिए सिर्फ़ 13,200, पर ये भी कम नहीं है। कम्प्यूटर के लिए 185,000 तो कंप्यूटर के लिए 117,000, ये भी मेरे हक़ में, पर इस बार दोनों में ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। तो कुल मिला के मैं सही हूँ। Yaane Donon roop sahi hote hain.

आपके डाँट भरे जवाब का इंतज़ार है। --सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) ०३:४१, २३ अप्रैल २००८ (UTC)

वर्तनी के मानक

आदरणीय अनिल जी,

सुमित जी ने कविता कोश में वर्तनी के मानक पन्ने पर कुछ बदलाव किये हैं। कृपया आप भी इन्हें देख लें और आवश्यकतानुसार इस पन्ने पर बदलाव कर दें।

सादर

--Lalit Kumar २०:१५, २१ अप्रैल २००८ (UTC)


मतलब आप तो उस उर्दू शायरी की साइट पर और फॉन्ट बदलने की साइट पर गए ही नहीं जिसके लिए चौपाल के सैक्शन 16 का मैंने आपको लिंक दिया था। शायरी की साइट देवनागरी में ही है, पर ग़ैर-यूनिकोड फॉन्ट पर है, जिसे यूनिकोड में बदलने के लिए दूसरी वाली साइट पर जाना पड़ता है, जहाँ एक-एक करके 13 की 13 कविताएँ पेस्ट कर दीजिए, फॉन्ट के मैन्यू में जहाँ sto1 लिखा हैं, वहाँ से शुषा चुनिए। बदलें का बटन दबाइए, और बस, तेरह की तेरह कविताएँ यूनिकोड में हाज़िर है। बस शब्दार्थ और कविता कोश के शुरुआती साँचों की कसर है।

किसी पन्ने को कैसे फोर्मैट किया गया है, ये जानने के लिए उन पन्ने के ऐडिट पर जाइए, वहाँ देखिए कौन सी कमांड लिखी हुई है, कैंसिल करके वापस आ जाइए। 12वीं दिखाने के लिए 12<sup>वीं</sup> लिखेंगे। अगर चार बार योजक दबाएँगे या टूलबार का दाएँ से दूसरा बटन दबाएँगे तो आड़ी लाइन आ जाएगी। फॉन्ट छोटा करना चाहें तो कर सकते हैं। 12px को 13px करने से ज़रा-सा बड़ा हो जाएगा। पर मुझे ये नहीं मालूम कि सुपरस्क्रिप्ट का इस्तेमाल करने से, बाक़ी टैक्स्ट का नास क्यों हो गया। - और ! ये निशान ऊपर चले गए, और एक लाइन के अक्षर कटे हुए दिख रहे हैं। आप Shift+w करते हैं तो ही आना चाहिए।

पता नहीं क्या गड़बड़ है 12 सुपरस्क्रिप्ट में दिखाई दे रहा, जबकि वीं दिखाई देना चाहिए था। उस लाइन का अल्पविराम ऊपर चला गया है। ये कमांड मैंने विकिपीडिया से सीखी थी, वहाँ का सैन्डबॉक्स देखिए

वार्ता --Sumitkumar kataria ०४:०४, १९ अप्रैल २००८ (UTC)

मजाज़

वर्तनी सुधार तो सोमवार तक टल गया, यूँ ही मजाज़ पर नज़र पड़ गई। आज आपने कविता डाली आज की रात, उसके रचना साँचे में आपने आहंग भर दिया, इसे मैंने आहंग / मजाज़ लखनवी किया, पर अब भी लिंक लाल। वजह ये कि आपने आहंग संग्रह का पन्ना तो बनाया ही नहीं। सो मैंने उसका पन्ना भी बना दिया, और आज की रात कविता का लिंक काट के वहाँ डाल दिया। सोचा कि आपको बोलूँ, मजाज़ के पन्ने पर बाक़ी जो कविताएँ लिखनी बची हैं उनके लिंक भी आहंग संग्रह के पन्ने पर डाल दें। पर लगा मैंने सुधार की बजाए गड़बड़ ही की है, क्योंकि कहीं पढ़ा था कि मजाज़ की एक ही किताब है। पर ये तुक्का भी लगा रहा हूँ कि इस किताब के अलावा भी उनकी कोई इक्का-दुक्का कविताएँ हो सकती हैं, अगर ऐसा है तो मेरा किया ठीक है। वर्ना, आहंग को मजाज़ के पन्ने पर ऊपर-ऊपर लिख देंगे, और उसका अलग से पन्ना नहीं बनाएँगे। इस बारे में आप बताइए। और भी दो चीज़े पूछनी हैं। असरारुल हक़ मजाज़ को मैंने असरारुल हक़ "मजाज़" कर दिया। ये जो उद्धरण चिह्न लगाएँ हैं, उसके लिए उर्दू में एक ख़ास निशान देखा है, उस निशान को क्या कहते हैं? और दूसरे, उपनाम का मतलब क्या होता है? surname या छद्म-नाम?

इसका अलावा आज की रात कविता को मैंने, जैसे कई किताबों में उर्दू की कविताएँ शब्दार्थ के साथ छपती है वैसा कर दिया। सोचा आपको बोलूँ आप भी ऐसे ही दिखाना, पर फिर गड़बड़। दूसरे निशान ऊपर चले गए, जिन-जिन लाइनों में सुपरस्क्रिप्ट डाली। इसका तो कोई ईलाज और वजह भी नहीं पता। शायद साइट में ही ख़राबी आ गई। मैं तो बिल्कुल ठीक कर रहा हूँ।

और मुझे ये भी लग रहा है कि आप इन कविताओं को टाइप कर रहे हैं। अगर ऐसा है तो यहाँ पर जाइए। शब्दार्थ के अलावा बाक़ी सारा काम हो जाएगा।

और एक बात और मैंने इस कविता में कहीं लिखा देखा, और उसे कर दिया। आप ये कैसे लिखते हैं, और क्या ये सही है? और ये है क्या? Shift+1 करने से इससे मिलता जुलता आ जाता है, जिसके बारे में मैंने यूनिकोड वालों की साइट पर पढ़ा कि ये द्रविडियिन स्क्रीप्ट में आता है।

वार्ता --Sumitkumar kataria ११:३४, १८ अप्रैल २००८ (UTC)

धन्यवाद

धन्यवाद अनिल जी, आपने सुमित जी के लिये मेरे लिखे संदेशों में वर्तनी की ग़लतियाँ ठीक कर दी। मेरा वर्तनी ज्ञान बहुत ही बुरा है; पर धीरे-धीरे सीख जाऊंगा।

सादर

--Lalit Kumar १९:३४, १७ अप्रैल २००८ (UTC)

मेरी सफ़ाई

अनिल जी, मैंने लिखा है "...तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। वो ऐसे गधे हैं जिनके बारे में बारे में तफ़सील में जानने के लिए यहाँ पर जाइए।" अब आप, सारी बात भूल कर व्याकरण पर आइए। सर्वनाम संज्ञा को न दोहराने के लिए इस्तेमाल होता है। दूसरे फ़िकरे में जो वो किसके लिए इस्तेमाल किया गया है? ज्ञानपीठ वालों के लिए। जो प्रूफ़रीडर चंद्रबिंदु का इस्तेमाल करना नहीं जानता, उसे गधा कहना में कोई उज्र नहीं होना चाहिए। आपको जो ग़लतफ़हमी हो रही है वो "यहाँ पर" वाले लिंक की वजह से है। ये हेमेंद्र जी के परिचय वाले पन्ने ले पर जाता है, जिस पर आपने हेमेंद्र जी को बिंदु का इस्तेमाल बताया है और प्रकाशकों के प्रूफ़रीडरों को कोसा है, और मैंने उनको(प्रूफरीडरों को) जो गधे की संज्ञा दी है, उसे मुनासिब ठहराने के लिए आपकी इस बात को दोहराने करने की बजाए, मैंने, जहाँ आपने ये बात की है, उस पन्ने का लिंक दे डाला। ये पन्ना हेमेंद्र जी का सदस्य वार्ता वाला पन्ना होता तो शायद आपको ये ग़लतफहमी नहीं होती, पर ये बात आपने उनके परिचय वाले पन्ने पर ही लिखी थी, जिसके सबब आपको ये लगा की मैं हेमेंद्र जी बेइज़्ज़्ती कर रहा हूँ। दरअसल, मुझे आपके इसी जवाब से पता चला था कि जो छपा हुआ है, वो भी ग़लत हो सकता है। यहीं पर मुझे ये जानकारी मिली थी। और इस पन्ने का ऐसा ही लिंक मैंने प्रतिष्ठा जी के सदस्य वार्ता वाले पन्ने पर भी दिया है। मेरी चिट्ठी में हेमेंद्र जी का न तो सीधे न परोक्ष रूप से कोई ज़िक्र है। Sumitkumar kataria ०४:३८, १४ अप्रैल २००८ (UTC)

और हाँ, आपको ये शक़ भी हो सकता है कि मैंने अपनी बात बदल दी है। इसके लिए आप हाल में हुए बदलाव में देख लीजिए। मैंने ललित कुमार के पन्ने पर आख़िरी बदलाव 13 अप्रैल को १३:२८ को किया (इस पन्ने के उस दिन के बाक़ी बदलावों के समय के लिए नीला तिकोना बटन दबाइए), आपने १८:३८ को मुझे संदेश भेजा, इसके बाद ललित कुमार के पन्ने में मेरे अकाउंट द्वारा कोई बदलाव नहीं है, आप मुझे जवाब भेजेंगे, उसके बाद ही मैं ललित जी से आगे बात करूँगा, वर्ना आपको लगेगा की मैंने अपनी बात बदल दी, क्योंकि तब मुझे ऐसा करने का मौक़ा मिल जाता है।

Sumitkumar kataria ०६:२९, १४ अप्रैल २००८ (UTC)

KKRachna टेम्प्लेट में एक और बदलाव हुआ है। इसके बारे में चौपाल में पढे़। --Lalit Kumar ११:४७, २८ जून २००७ (UTC)

कविता संग्रह का लिंक बनाना

आदरणीय अनिल जी,

KKRachna टेम्प्लेट का प्रयोग करते समय जब हम संग्रह का लिंक बनाते हैं तो वह ऐसे बनना चाहिये:

संग्रह का नाम / कवि का नाम

उदाहरण के लिये:

|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ

लिखने की बजाये इसे कवि के नाम के साथ ऐसे लिखा जाना चाहिये:

|संग्रह=निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ / कुमार विकल

तभी लिंक ठीक से बनेगा

सादर

--Lalit Kumar ०९:१३, १९ सितम्बर २००७ (UTC)

संपादन के संबंध में

आदरणीय अनिल जी,

अभी कुछ दिनों पूर्व आपने मुक्तिबोध के कविता संग्रह "चाँद का मुँह टेढ़ा है" में संपादन करते हुए 'चाँद' पर से

चंद्रबिंदु हटा कर चांद कर दिया है। राजकमल द्वारा प्रकाशित संग्रह में इसे "चाँद का मुँह टेढ़ा है" ही लिखा गया है। मैं

प्रायः कविता संग्रह में प्रकाशित पाठ के अनुरूप ही कविताएँ टंकित कर काव्यकोश में डालता हूँ।

वैसे सही-ग़लत क्या है आप मुझसे ज़्यादा जानते होंगे, क्योंकि मेरा हिन्दी के व्याकरण का अध्ययन नहीं के बराबर

है। काव्यकोश के वर्तनी संबंधी दिशा निर्देशों में भी चाँद पर चंद्रबिंदु ही लगाने का उल्लेख है। मुझे भी लगता है कि

यदि चाँद से ही चंद्रबिंदु छीन लिया जाएगा तो वह बेचारा कहाँ जाएगा। उचित मार्ग दर्शन की अपेक्षा है।--Hemendrakumarrai ११:५५, १८ जनवरी २००८ (UTC)

लाख दुश्मनों बाली दुनिया के बावजूद / जयप्रकाश मानस क्या इसके हिज्जे ग़लत नहीं हैं? और हाँ, बहुत दिन पहले आपको ई-मेल भेजा था, शायद पढ़ा नहीं। --Sumitkumar kataria १६:३१, ३ मार्च २००८ (UTC)