भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरा घर-आँगन / भारतेन्दु मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
अब तो सभी | अब तो सभी | ||
− | हवा | + | हवा में बाते करते हैं |
व्याकुल हुए किसान | व्याकुल हुए किसान | ||
भूख से मरते हैं | भूख से मरते हैं | ||
मोबाइल वो लिए हुए मुह बाये हैं । | मोबाइल वो लिए हुए मुह बाये हैं । | ||
</poem> | </poem> |
08:51, 5 जुलाई 2011 का अवतरण
पूर्वमुखी मेरा घर-आँगन भीज रहा है
पच्छिम से कुछ ऐसे बादल आए हैं ।
इनमें पानी नहीं
सिर्फ तेज़ाब भरा है
रूप-रंग ये कैसा जीवन में उतरा है
आज कँटीले झाड़ यहाँ अँकुराए हैं ।
पीली होकर घास
यहाँ हरियाती है
बीमारों की संख्या बढ़ती जाती है
थोथे गर्जन और धुएँ के साए हैं ।
अब तो सभी
हवा में बाते करते हैं
व्याकुल हुए किसान
भूख से मरते हैं
मोबाइल वो लिए हुए मुह बाये हैं ।