पच्छिम से कुछ ऐसे बादल आए हैं ।
इनमे इनमें पानी नही नहीं
सिर्फ तेज़ाब भरा है
रूप-रंग ये कैसा जीवन मे में उतरा है आज कँटीले झाड झाड़ यहाँ अँकुराए हैं ।
पीली होकर घास
यहाँ हरियाती है
बीमारों की संख्या बढती बढ़ती जाती है
थोथे गर्जन और धुएँ के साए हैं ।
अब तो सभी
हवा मे बाते में बातें करते हैं
व्याकुल हुए किसान
भूख से मरते हैं
मोबाइल वो लिए हुए मुह बाये मुँह बाए हैं ।
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