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क्या ज़िन्दगी को दीजिये क्या-क्या न दीजिये / गुलाब खंडेलवाल
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20:08, 6 जुलाई 2011
बातें बना-बना के फिराते हैं मुँह सभी
सच है, भरम
किसी को
किसीको
भी अपना न दीजिये
ढाढ़स है, मन का भेद है, आँचल की है हवा
भाती नहीं जो आपको गज़लें गुलाब की
उन पर न कान देना है अच्छा , न दीजिये
<poem>
Vibhajhalani
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