बड़-बड़ बानी बोल कै, कागा मान घटाय।
कोऊ वाकै वाकौ यार है, 'आकुल' कोइ कोई बताय।।2।।
चिरजीवी की काकचेष्टा, जग ने करी बखान।
पिक बैरी कर आहत सीता, खींचै खोयो सब सम्मान।।3।।
पिक के घर में सेव कै, कागा पिक ना होय।
सद्गति बिन उत्तर करम, जीवन का बिन नाक।।6।।
कागा महिमा जान लो ल्यो, पण्डित काक भुशण्ड।इंद्र पुत्र जयंत कूँ , एक आँख कौ दण्ड।।7।।
आमिष भोजी कागला, कोई न प्रीत बढ़ाय।
औघड़ सौ बन-बन घूमै, यूँ ही जीवन जाय।।8।।