काक बखान / गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'
कोयल कौ घर फोर कै, घर घर कागा रोय।
घड़ियल आँसू देख कै, कोउ न वाकौ होय।।1।।
बड़-बड़ बानी बोल कै, कागा मान घटाय।
कोऊ वाकौ यार है, 'आकुल' कोई बताय।।2।।
चिरजीवी की काकचेष्टा, जग ने करी बखान।
पिक बैरी कर आहत सीता, खोयो सब सम्मान।।3।।
पिक के घर में सेव कै, कागा पिक ना होय।
लाख मलाई चाट कै, काला सित ना होय।।4।।
मेहनत कर कै घर करै, पिक से यारी होय।
कागा सौ ना जीव है, ऐयारी मे कोय।।5।।
गो, बामन बिन कनागत, दशाह घाट बिन काक।
सद्गति बिन उत्तर करम, जीवन का बिन नाक।।6।।
कागा महिमा जान ल्यो, पण्डित काक भुशण्ड।
इंद्र पुत्र जयंत कूँ, एक आँख कौ दण्ड।।7।।
आमिष भोजी कागला, कोई न प्रीत बढ़ाय।
औघड़ सौ बन-बन घूमै, यूँ ही जीवन जाय।।8।।
कोयल बुलबुल ना लड़ैं, दोनों मीठौ गायँ।
प्रीत बढ़ावै दोसती, कागा समझै नायँ।।9।।
'आकुल' या संसार में, तू कागा से सीख।
ना काहू से दोसती, ना काहू से भीख।।10।।