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गोरी हथेली पर / तारादत्त निर्विरोध
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16:11, 24 सितम्बर 2011
खेल रहा बाल रवि
कमसिन पहाड़िन की
गोरी हथेली पर
।
घेर में किरणों के
शिशु हो मचल रहा
उलझे हैं तार-तार
प्रेम की पहेली पर
।
पंछियों के नीड़ों में
उग आया शोर
चढ़ रही है
‘‘सीढ़ियाँ‘‘
"सीढ़ियाँ"
पर्वत की ओर
यौवन का रंग चढ़ा
निर्जन के गाँव की
गूंगी सहेली
पर।
पर ।
</poem>
अनिल जनविजय
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