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यक़ीन / विमलेश त्रिपाठी

7 bytes added, 05:54, 11 नवम्बर 2011
मरा नहीं है
जिन्दा ज़िन्दा है आदमीअब भी थोड़ा -सा चिड़ियों के मन में
बस ये दो कारण
काफी काफ़ी हैंपरिवर्तन की कविता के लिए।लिए ।
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