भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यक़ीन / विमलेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक उठे हुए हाथ का सपना
मरा नहीं है

ज़िन्दा है आदमी
अब भी थोड़ा-सा चिड़ियों के मन में

बस ये दो कारण
काफ़ी हैं
परिवर्तन की कविता के लिए ।