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"यक़ीन / विमलेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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मरा नहीं है
 
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जिन्दा है आदमी
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ज़िन्दा है आदमी
अब भी थोड़ा सा चिड़ियों के मन में
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काफी हैं
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काफ़ी हैं
परिवर्तन की कविता के लिए।
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परिवर्तन की कविता के लिए ।
 
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11:24, 11 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

एक उठे हुए हाथ का सपना
मरा नहीं है

ज़िन्दा है आदमी
अब भी थोड़ा-सा चिड़ियों के मन में

बस ये दो कारण
काफ़ी हैं
परिवर्तन की कविता के लिए ।