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सपना / विमलेश त्रिपाठी

15 bytes removed, 05:58, 11 नवम्बर 2011
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गाँव से चिट्ठी आयी आई है
और सपने में गिरवी पड़े खेतों की
फरौती फिरौती लौटा रहा हूँपथराये कन्ध्े पथराए कन्धे पर हल लादे पिताखेतों की तरपफ तरफ़ जा रहे हैं
और मेरे सपने में बैलों के गले की घंटियाँ
घुंघरू की तान की तरह लय बज रही हैं समूची ध्रती धरती सर से पाँव तक
हरियाली पहने मेरे तकिये के पास खड़ी है
 गाँव से चिट्ठी आयी आई है
और मैं हरनाथपुर जाने वाली
पहली गाड़ी के इन्तजार में
स्टेशन पर अकेला खड़ा हूँ।हूँ ।
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