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सपना / विमलेश त्रिपाठी
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गाँव से चिट्ठी आई है
और सपने में गिरवी पड़े खेतों की
फिरौती लौटा रहा हूँ
पथराए कन्धे पर हल लादे पिता
खेतों की तरफ़ जा रहे हैं
और मेरे सपने में बैलों के गले की घंटियाँ
घुंघरू की तान की तरह बज रही हैं
समूची धरती सर से पाँव तक
हरियाली पहने मेरे तकिये के पास खड़ी है
गाँव से चिट्ठी आई है
और मैं हरनाथपुर जाने वाली
पहली गाड़ी के इन्तजार में
स्टेशन पर अकेला खड़ा हूँ ।