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इंसान कहाँ (हाइकु) / जगदीश व्योम
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|रचनाकार=जगदीश व्योम
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<poem>
इर्द गिर्द हैं
साँसों की मशीने
इर्द गिर्द हैं
साँसों की ये मशीने
इंसान कहाँ !
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा ।
सहम गई
फुदकती गौरैया
शुभ नहीं ये।
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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