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|रचनाकार=जगदीश व्योम
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{{KKCatNavgeet}}[[Category:हाइकु]]
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इर्द गिर्द हैं
साँसों की मशीने
 
इर्द गिर्द हैं
साँसों की ये मशीने
इंसान कहाँ !
 
 
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा ।
 
 
सहम गई
फुदकती गौरैया
शुभ नहीं ये।
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