|रचनाकार=शम्भु बादल
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मौत के कितने नाख़ून
कितनी गहराई तक
धँसे हैं मेरे सीने में !
मौत के कितने नाखून<br>दर्द की कैसी-कैसी नदियाँकितनी गहराई तक<br>धँसे टहल रही हैं मेरे सीने मेंहोंठों परअपने तमाम मगरमच्छों के साथ !<br><br>
दर्द की कैसी कैसी नदियाँ<br>टहल रही हैं होंठों पर<br>अपने तमाम मगरमच्छों के साथ !<br><br> और तुम<br>अपनी हँसी की तलाश में<br>मेरा चेहरा रौंद रहे हो !?</poem>