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सर्जना के क्षण / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे / अज्ञेय
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भले ही फिर व्यथा के तम में
बरस पर बरस बीतें
एक मुक्तारूप को पकते!  '''दिल्ली, 17 मई, 1956'''
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