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<poem>
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अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये .. </poem>
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