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कवि: [[सर्वेश्वरदयाल सक्सेना]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना]]}}{{KKCatKavita}}<poem>मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के ।आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गलीपाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के ।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाएआँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाएबाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके ।
मेघ आये बड़े बन-ठन बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की‘बरस बाद सुधि लीन्ही’बोली अकुलाई लता ओट हो किवार कीहरसाया ताल लाया पानी परात भर के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती - गाती बयार चली <br>दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली<br><br>पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के। पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये<br>आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये<br>बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br> बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की<br>‘बरस बाद सुधि लीन्ही’<br>बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की<br>हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।<br><br> क्षितिज अटारी गदरायी गदराई दामिनि दमकी<br>‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी गई अब भरम की’<br>बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके<br>मेघ आये आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।के ।<br/poem>
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