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"ध्रुवतारा / विभूति आनन्द" के अवतरणों में अंतर

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।।एक।।
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हम अपना अंदर
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मात्र एकटा इंद्रधनुष ल’ क’
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गुनगुनाए नहि चाहैत छी
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हम जीब’ चाहैत छी
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एकटा संपूर्ण आकाश
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जाहि आकाशमे
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एकटा समन्वित स्वप्न
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एकटा समन्वित जीवनक संग
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कुम्हार-मोन लेले टहलल-बूलल करए
  
अपन परिवाक लेल
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ई समय
मुट्ठी भरि प्रकाशकें
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हमरा एकटा इन्द्रधनुष द’ क’
जोगा क’ रखबाक सेहन्ता लेने
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फुसियाब’ चाहैत अछि
अपनहि छाहरिक संग भुतिया रहल छी-
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सभकें फराक-फराक आकाश
एहि शहरसँ ओहि शहर
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फराक-फराक जीवन
एहि डेरासँ ओहि डेरा....
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फराक-फराक स्वप्नसँ
गाम
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फराक-फराक राख’ चाहैत अछि
एक पातर रेघा सन
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निर्बाध
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छटपटाइत रहल अछि....
+
  
गामक जाहि उजासमे
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चतुर्दिक वायुरोग,
काल्हि
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तनाव बढ़ि रहल अछि
उठि क’ ठाढ़ भेल रही,
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वेतनक नियमितता पर
आइ एक प्लेटफार्म सन भ’ गेल अछि !
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संदेह चढ़ि रहल अछि
ई प्लेटफार्म कें
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अकारण मकान मालिक
पसिन्न नहि छनि-
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मुँहाँबज्जी बन्द क’ लेलक अछि
से एक फराक दुख अछि
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सहसा
 
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मसक’ लागल अछि चादर
।।दू।।
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मूस छुछुन्नरि आ मोसक
हमर ई जीवन
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आक्रमण बढ़ि गेल अछि
लटकल सन देखाइत अछि
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कोनो-ने-कोनो कारण ल’ क’
बाल-बच्चाक ई स्थानान्तरणीय गामघर
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समाज हकमि रहल अछि
हम भोगि नहि पबैत छी
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तें,
भगैत छी
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आरोप प्रत्यारोपक संसद गरमा उठल अछि
भगैत रहैत छी
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अछैत तमाम विपरीतक
भगिते जाइत छी ....
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हम हारब पसिन्न नहि करैत छी
आयु मुँह दूसैत अछि
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अपन सुख-दुख जीवन
हम दुर्बल भेल जाइत छी
+
समूहमे गाब’ चाहैत छी
 
+
अपन एहि स्वप्निल स्नेहिल ग्रह-नक्षत्रक बीच
।।तीन।।
+
शीत-तापसँ लड़ैत
परिवारक इच्छा नहि रहै,
+
प्रतीक्षा कर’ चाहैत छी एक धु्रवतारा
हम गाम गेल रही
+
अपन-अपन अंदर दिपदिपाब’ चाहैत छी.....
नीक लागल रहए भोर
+
बाँचल रहए बसातमे स्निग्धता
+
चून-तमाकूक संबंध शेष रहै
+
पाकल गहुमक झूमैत बालिक आंतरिक संगीत
+
तथा हर हरबाहक मिलाप
+
सुनबा-देखबा-भोगबा लेल भेटल रहए..
+
अखरल छल बस एकेटा गप
+
जे ओत’ हम नहि रही
+
संगी-साथी नहि रहए
+
गाम कुहरि रहल छल
+
आ हम भागि रहल छलहुँ
+
कोनो किरायाक मकानमे
+
शापित सन जीबाक लेल....
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08:44, 6 जून 2013 के समय का अवतरण

 
हम अपना अंदर
मात्र एकटा इंद्रधनुष ल’ क’
गुनगुनाए नहि चाहैत छी
हम जीब’ चाहैत छी
एकटा संपूर्ण आकाश
जाहि आकाशमे
एकटा समन्वित स्वप्न
एकटा समन्वित जीवनक संग
कुम्हार-मोन लेले टहलल-बूलल करए

ई समय
हमरा एकटा इन्द्रधनुष द’ क’
फुसियाब’ चाहैत अछि
सभकें फराक-फराक आकाश
फराक-फराक जीवन
फराक-फराक स्वप्नसँ
फराक-फराक राख’ चाहैत अछि

चतुर्दिक वायुरोग, आ
तनाव बढ़ि रहल अछि
वेतनक नियमितता पर
संदेह चढ़ि रहल अछि
अकारण मकान मालिक
मुँहाँबज्जी बन्द क’ लेलक अछि
सहसा
मसक’ लागल अछि चादर
मूस आ छुछुन्नरि आ मोसक
आक्रमण बढ़ि गेल अछि
कोनो-ने-कोनो कारण ल’ क’
समाज हकमि रहल अछि
आ तें,
आरोप प्रत्यारोपक संसद गरमा उठल अछि
अछैत तमाम विपरीतक
हम हारब पसिन्न नहि करैत छी
अपन सुख-दुख जीवन
समूहमे गाब’ चाहैत छी
अपन एहि स्वप्निल स्नेहिल ग्रह-नक्षत्रक बीच
शीत-तापसँ लड़ैत
प्रतीक्षा कर’ चाहैत छी एक धु्रवतारा
अपन-अपन अंदर दिपदिपाब’ चाहैत छी.....