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एक लड़का / इब्ने इंशा

21 bytes added, 05:20, 9 जुलाई 2013
|रचनाकार=इब्ने इंशा
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खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूं चाहूँ तो इक-इक दुकां मोल लूंलूँआज चाहूं चाहूँ तो सारा जहां मोल लूंलूँनारसाई का जी में धड़का कहां ?पर वो छोटछोटा-सा अल्हड़-सा लड़का कहां कहाँ?</poem>
नारसाई=असमर्थता
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