|रचनाकार=इब्ने इंशा
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एक छोटा-सा लड़का था मैं जिन दिनों
एक मेले में पंहुचा हुमकता हुआ
जी मचलता था एक-एक शै पर मगर
जेब खाली थी कुछ मोल ले न सका
लौट आया लिए हसरतें सैकड़ों
एक छोटा-सा लड़का था मै जिन दिनों
खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूं चाहूँ तो इक-इक दुकां मोल लूंलूँआज चाहूं चाहूँ तो सारा जहां मोल लूंलूँनारसाई का जी में धड़का कहां ? पर वो छोटछोटा-सा अल्हड़-सा लड़का कहां कहाँ? </poem>
नारसाई=असमर्थता