{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
|संग्रह=फूल नहीं , रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
}}
{{KKPrasiddhRachna}}{{KKCatKavita}}<poem>
मार हथौड़ा,
कर-कर चोट !
लाल हुए काले लोहे को
जैसा चाहे वैसा मोड़ !
:::मार हथौड़ा,
:::कर-कर चोट !
:::थोड़े नहीं-- अनेकों गढ़ ले
:::फ़ौलादी नरसिंह करोड़ ।करोड़।
मार हथौड़ा,
कर-कर चोट !
लोहू और पसीने से ही
बंधन की दीवारें तोड़ ।तोड़।
:::मार हथौड़ा,
:::कर-कर चोट !
:::दुनिया की जाती ताकत हो,
:::जल्दी छवि से नाता जोड़ !