|संग्रह=
}}
{{KKCatMoolRajasthaniKKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita}}<poem>खिलती कळियाँ गळियाँ सौरम, फ़ूट्याँ सरसी ए।
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥
हेली! हेलो पड़याँ
हवेली छूट्याँ सरसी ए॥
</poem>
'''शब्दार्थ'''
हेली=हवेली=काया, आत्मा का घर
हेलो=आवाज देना, जब बुलावा आएगा
छूट्याँ सरसी ए=छोड़ना ही पड़ेगा, बिना छोड़े नही बनेगा</poem>